आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022
भाग-16
साधना ने अपने बचपन की उस घटना को सिद्धार्थ को बताया जिस कारण उसे केंचुएं और मिट्टी से डर लगता है ।
कैसे उसके मिटृटी खाने के कारण उसके पेट में कीड़े हुए और काला नमक खाने से उल्टी में कीड़े निकले जिन्हें मुर्गी के बच्चे जिसे वो अपना दोस्त मान रही थी उन्होंने सारे कीड़े खा लिए।
अब गतांक से आगे...
भाई ने उसकी उल्टी साफ की और वो मुर्गी के चारों बच्चे उसके पेट से निकले कीड़ों को खाकर छटपटाने लगे और मर गए। भाई भी रो रहा था उन्हें मरा हुआ देखकर और साधना भी बुरी तरह रो रही थी।
उसे लग रहा था पापा की बात बिल्कुल सही थी मिट्टी खाने के कारण ही उसके पेट में कीड़े हुए जिन्हें खा कर उसके सभी नए दोस्त मर गए।
बस उस दिन के बाद से उसने कभी मिट्टी को हाथ नहीं लगाया। पैरों में कहीं मिट्टी ना लग जाए वो हमेशा चप्पल जूता पहन कर रहती।
केंचुएं और जमीन पर रेंगने वाले कीड़े उसे भयभीत कर देते और वो चिल्लाती बचाओ.. बचाओ..।
सपने में भी उसे वही कीड़े दिखते । वो जब भी आँख बंद करती खुद को चारों तरफ केंचुओं से घिरा पाती।
भाई को उस दिन के बाद जब भी उससे कोई काम करवाना होता और वो आनाकानी करती तो किसी मोटे धागे को अपनी उंगली या किसी चीज से लटका कर उसे डराता और कहता अगर तूं मेरा काम नहीं करेगी तो मैं तुझ पर इस चाली को फैंक दूंगा। वो केंचुएं को चाली ही बोलती।
चाली के डर से वो भाई की सब बात मानती, उसका सारा काम कर देती।
यह डर उसके अंदर हमेशा समाया रहा। बचपन बीता फिर स्कूल कॉलेज जाने लगी पर वो उसी तरह केंचुएं को देखते ही का़ँपने लगती। बारिश में तो जब यह जमीन पर रेंगते दिखते वो अपने कमरे के बिस्तर से बाहर ही नहीं आना चाहती थी।
अपने मन के इस डर को बताते बताते साधना सिद्धार्थ की गोद में कब सो गई उसे पता ही नहीं चला।
***
साधना और सिद्धार्थ दोनों ही अपने पहले प्यार को नहीं भूल पाए थे और माता पिता की खुशी के कारण उनकी इच्छा से शादी तो कर ली पर कभी पति पत्नी का रिश्ता नहीं निभाएंगे वह। चार दिनों से अपने आप से किए वादों को भूल गए।
मुँहबजी की रस्म इस तरह होगी यह तो साधना ने कभी सोचा ही नहीं था।
कितनी मासूम लग रही थी साधना उसकी गोदी में सोते हुए वो अपलक निहार रहा था उसे।
,,तभी दीपा का ख्याल आते ही वो भाग जाना चाहता था साधना से दूर पर कुछ तो था ऐसा आकर्षण उस सांवली सी भोली सी सूरत में।
जोड़ियां ऊपर वाला ही बनाकर भेजता है। अपने आप इस जोड़ी को बनाने की कोशिश नाकामयाब ही रहती है।
दीपा की आत्मा यह देख बेचैन होने लगी जब साधना सिद्धार्थ की गोदी में सोई थी और वो उसका माथा सहला रहा था।
,,ऐसा नहीं होगा... सिद्धार्थ मुझे भूल जाए यह मैं होने नहीं दूंगी।
मुझे भूलकर किसी और से प्यार करे... नहीं नहीं कभी नहीं।
वो छटपटा रही थी। कुछ करना होगा इन्हें एक दूसरे से दूर करना होगा। अब मुझे इस परिवार के लोगों का सहारा लेकर ही अपने काम को अंजाम देना होगा। दीपा की आत्मा साधना को सिद्धार्थ से दूर करने की नई योजनाएं बना रही थी।
काफी देर तक साधना सावन की गोदी में सिर रखकर सोती रही और सिद्धार्थ उसका सिर सहलाता रहा।शाम हो गई थी, घर में मेहमानों का आना शुरू हो गया था।
सिद्धार्थ की बड़ी भाभी ने दरवाजा खटखटाया और कहा," देवरजी अभी तक दिनभर में आपकी सुहागरात पूरी हो गई हो तो दरवाजा खोलिए। "
सिद्धार्थ ने जब देखा साधना बहुत डरी हुई है,बच्चे और घर के सब लोग उस पर हंँस रहे हैं।तो जब वो डॉक्टर के जाने के बाद साधना के लिए साबुदाना बनवाकर लाया तो अपने कमरे की चिटकनी आदतन लगा दी।
वो अक्सर अपने कमरे को अन्दर से बंद करके ही रहा करता था जिससे घर में सांस बहुओं के बीच होते झगड़े की आवाजें और बच्चों की चिल्लम-पो उसे डिस्टर्ब ना करे।
वो बड़ी भाभी के मज़ाक को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पाता था,उसे भाभी की इस तरह की बातों से बहुत गुस्सा आता।
गुस्से में दरवाजा खोलते हुए सिद्धार्थ अपनी भाभी से बोला," आपको शर्म लिहाज कुछ है या नहीं। या इंसानियत भी मर गई है आपकी।उसकी तबियत खराब है इसलिए सो रही थी तो मैंने दरवाजा बंद किया। बताईए क्या काम है।"
" अरे! गुस्साते काहे हैं देवर जी, आपकी ही कनिया है । अब रात को दरवाजा बंद कर एक साथ रहें या दिन में क्या फर्क पड़ता है। इसी लिए ना शादी के लिए मांँ और हम सब आपको ज़ोर दे रहे थे।वो तो आप ही टाल मटोल कर रहे थे।सच बताइए मजा लूट रहे हैं ना।"
भाभी के ऊपर अपने कमरे का दरवाजा उखाड़ कर मुंँह तोड़ देने का मन कर रहा था सिद्धार्थ का पर वो अपने हाथों की हथेलियों को भींच कर और दांतों को कीचकर रह गया।
सिद्धार्थ की भाभी की आवाज सुनकर साधना की नींद खुल गई।वो अपना आँचल सिर पर रखकर बैठ गई।
दरवाजे के अंदर से झांकते हुए साधना को देख वो बोली,"अरे! नबकी कनिया , नींद पूरी हो गई तो आ जाओ पार्लर वाली कब से बैठी है तुम्हें तैयार करने के लिए। वैसे इसके लिए तो माँ जी पैसा बर्बाद ही कर रहीं हैं।" साधना का मज़ाक बनाते वो हँस रही थी।
क्रमश:
आपको यह कहानी पसंद आ रही है यह जानकर खुशी हुई।
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है।
कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता
Khushbu
05-Oct-2022 03:52 PM
Nice
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Gunjan Kamal
29-Sep-2022 02:31 PM
Nice part 👌
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